Life skills to teach your child | जीवन कौशल जो आपको अपने बच्चों को सिखाना चाहिए
घर में बच्चों का होना मतलब एक बड़ी जिम्मेदारी, साथ ही बच्चे खुशीयों की वजह भी होते है। बच्चे की बातें, उसका चलाना, हसना, अपने हाथों से भोजन खाना हर चीज जैसे एक त्यौहार समान होती है। पूरा घर बच्चों के साथ बच्चा बन जाता है।
बच्चे के माँ और पिता हमेशा इस सोच मे लगे होते है की क्या हम अपने बच्चे को, वो सारी चीजे दे पा रहे है जो बाकी parents दे रहे हे। parents बच्चोंको नई नई चींजे सीखने में मदत करते है। एक साल का होने पे उसे चलना सिखाओ, फिर बोलना सिखाओ, खाना खाना और कई सारी बातें। जैसे बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं, एक जंग शुरू हो जाती है – पढ़ाई, teacher, school, friends, test, exams। क्या इन सबमें बच्चे अपने आपको संभाल लेते हैं। क्या हम a, b,c,d और 1,2,3,4 सिखाते समय बच्चोंको mentally और physically strong रहना भी सिखाते है? इस competition से भरी दुनिया मै हम बच्चोंको कुछ जरूरी चीजें सिखाना भूल जाते हैं? अभी देरी नहीं हुई है। इस article में आप देखेंगे कि किस उम्र में बच्चोंको कोनसी Life Skills सिखानी चाहिए जिस्से बच्चा जिंदगी की हर आसान और मुश्किल दौर का निडर होके सामना करे और एक successful जिंदगी जिये।
पहले 2 से 5 साल ( Toddler)
Politeness ( नम्रतासे बात करना)
उम्र के दूसरे साल बच्चे काफी कुछ बोलना सीख लेते हैं। सबसे जरूरी यह है के हुम् खुद बच्चों से हमेशा नम्रतापूर्वक बात करे। बच्चे ज्यादातर बडोंकीही आदतें सीख लेते हैं।
इसी उम्र मैं बच्चोंको Thank you, Please, क्या मुझे ये मिलेगा?, क्या मैं ये ले सकती हूं? इन् शब्दों का और सवालोंका उपयोग करना सीखना जरूरी हैं। यही बच्चों के लिए formation years होते हैं और बच्चे जल्दी सिख भी जाते हैं।
Patience (संयम रखना)
अक्सर ये देखा जाता हैं कि आजकल घर में माता पिता दोनों job करते हैं। इसमें बच्चों को समय कम दिया जाता है। Financially घर की परिस्थिति भी sound होती हैं तो होता ये हैं के बच्चा जो भी और जब भी मांगता हैं , माता पिता उसे वो चीज तुरंत दे देते हैं। कई बार बच्चोंको समय न देनेका guilt भी होता है। लेकिन इससे बच्चे ज़िद्दी औऱ inpatient हो जाते हैं। किसी चीज़ के लिए इंतज़ार करना पड़ता हैं, या उसे पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती हैं, इन बातों का एहसास बच्चों को देना ज़रूरी होता हैं।
जितना जल्दी हो सके बच्चोंको संयम रखना सीखना चाहिए। इन अच्छी आदतों का उपयोग जीवन भर फलस्वरूप होता हैं।
Sharing is caring ( जो भी हैं मिलबाटके लो)
आजकल के Nuclear family में कई बार एक ही बच्चा होता हैं। घर में जो भी हैं सब उसी का होता हैं, उसी के लिये होता हैं। खाने से ले के, कमरे तक, खिलौने भी एक ही बच्चे के होते हैं जो उस पर हक्क जताए। इसलिए बच्चे अपने हर चीज़ के लिए बहुत ही ज्यादा possessive हो जाते हैं। उसे कोई हाथ भी लगाए तो वो aggressively behave करते हैं। इस बातकी तकलीफ उन्हे और आजू- बाजू मौजूद हर शख्स को होती है। school में तो ये सब और ज्यादा बढ़ जाता हैं।
इसलिए बच्चों को शुरू से ये समझाना चाहिए कि हर एक चीज़ share करनी चाहिए। शुरुवात मा और पिता से करे। जरूरत नही हो फ़िर भी उसके chocolate का एक हिस्सा माँ के लिए या दादा दादी के लिए निकाल के रखो ये आदत रखनी चाहिए।
उम्र 6 से 13 साल
Self-discipline (स्वयं शिस्त )
इस उम्र में बच्चे अपने जीवन के सबसे महत्व पूर्ण पर्व की शुरुआत करते है, और वो है शिक्षा। school start होने पर बच्चोंको एक समय सीमा में अनुशासन के साथ अपने काम करना पड़ता हैं। घर से ही अगर इस अनुशासन की शुरुआत होजाये तो बाहर school मैं बच्चों का performance अधिक खिल कर दिखता हैं।
उम्र के इस दौरान ही अगर बच्चों को जरूरी आदते औऱ हर चीज़ के लिए एक तय समय की जानकारी दे दी जाये तो वो जल्दी pick up कर लेते हैँ। Discipline जीवन के success में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जितना जल्दी उसका अनुभव ले और उसके फ़ायदोंके बारेमें जाने उतना सफलता के लिऐ अच्छा है।
Importance of Social life (सामाजिक जीवन का महत्त्व)
जैसे ही हमारे बच्चें बड़े होते हैं उनको friends का महत्व और friendship कैसे निभानी चाहिए ये सीखना चाहिए। मानव मूलतत्त्व से एक सामाजिक प्राणी है। friends के साथ हम अच्छा और बुरा अनुभव share कर सकते हैं। उनसे कई नई चीजें सिख सकते है। उनका साथ होना और उन्हें साथ देना जीवन का एक भाग होना चाहिए।
हम जिस देश में रहते हैं वह हमारे पड़ोसी भी हमारे परिवार का हिस्सा होते हैं। बच्चोंको यह समझना जरूरी है कि वे सभी बडे लोगों के साथ आदर पूर्व पेश आए। अपनी छोटे छोटे बच्चों को समझनेकी कोशिश करें।
उम्र 14 से 18 साल
Self-dependency (आत्मनिर्भरता)
जब बच्चे teenage में enter करते है, तब उनमे कई महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं। उनकी एनर्जी लेवल बोहोत ज्यादा होती हैं। curiosity और इस दुनिया को खोजने का एक नया नज़रिया उनमे होता हैं। इन सब में वो भटक जाने का डर सबसे ज्यादा होता हैं। इस उम्र में बच्चोंकी मांगे भी बड़ी हो जाती हैं। unconditionally उन मांगों को पूरा करना , बच्चोको अलसी और माता पीता निर्भर बना सकता हैं।
इस उम्र में बच्चों को अपना काम खुद करे, अपनी जरुरतों को खुद होके arrange करे। parents को उन्हें आर्थिक सहायता और guidance जरूर देते रहे।
Knowing responsibilities ( जिमेददारियोंको समझना)
एक teenager को अपनी जिम्मेदारियोंको समझना बोहोत ही जरूरी हैं। parents का ये कर्तव्य हैं, की अपने teenager को वे अच्छी और बूरी चिजोंके बारे में सही तरीकेसे जानकारी देते रहे। इसी के साथ उन्हें परिवार की तरफ और इस समाज की और अपनी जिम्मेदारियोंका एहसास दिलवाए।
Money management (अर्थिक व्यवस्थापन)
बच्चे आर्थिक रूप से पूर्णतः अपने माता पिता पे निर्भर होते है। लेकिन उन्हें पैसोंकी किम्मत और उनका उपयोग दिनोंके बारेमें जानकारी देना जरूरी हैं। हर penny जो घर में खर्च हिती हैं, वो कहा से और कैसे आती है इसकी जानकारी होना और उसका एक एहसास होना जरूरी हैं।
सभी पेरेंट्स को यह ध्यान में रखना चाहिए कि, जीवन की सफलता का definition सिर्फ बड़े salary की नौकर, या business में भारी प्रॉफिट होना, बंगला, गाड़ी, foreign ट्रिप होना यह नही हैं। एक जिम्मेदार नागरिक होना, अच्छाई का साथ देना, अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाना, गरीबों को मदत करना इसमे भी जिंदगी की एक सफलता ही है।