तुलसीदास का जीवन परिचय

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तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas Ji ka Jivan Parichay | Jivani | Biography | History | Story in Hindi

तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas Biography in Hindi

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।

अर्थात- तुलसीदास जी का कथन है कि मधुर वाणी सभी ओर सुख का वातावरण उत्पन्न करती हैं। ऐसी वाणी हर किसी को अपनी ओर सम्मोहित करने के लिए एक कारगर मंत्र है इसलिए हमें कटु शब्दों और कटु वाणी त्याग कर मधुरता से लोगों से संवाद करना चाहिए।

हिंदी साहित्य के महान कवि तुलसीदास अपनी कविताओं और दोहों के लिए जाने जाते हैं। हम सभी ने अपने जीवन में कभी न कभी तुलसीदास की कविताएं और दोहें पढ़े होंगे।

तुलसीदास के द्वारा लिखित रामचरितमानस तुलसीदास की सबसे प्रमुख कृति में से एक है। तुलसीदास अपना अत्यधिक समय प्रकृति के साथ और गंगा किनारे बिताते थे। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें-

नामगोस्वामी तुलसीदास
जन्म1500 ईस्वी
जन्म स्थानराजापुर, बांदा, उत्तर प्रदेश
पिताआत्माराम दुबे
माताहुलसी देवी
विवाहरत्नावली
धर्महिंदू
गुरुनरहरिदास
सम्मानगोस्वामी, संत, अभिनववाल्मीकि, भक्तशिरोमणि आदि
साहित्य योगदानरामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली,कवितावली, हनुमान चालीसा, जानकी मंगल, पार्वती मंगल आदि।
तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas Ji ka Jivan Parichay | Jivani | Biography | History | Story in Hindi

जन्म और प्रारंभिक जीवन

तुलसीदास जी का जन्म 1500 ईस्वी में हुआ था। इनकी जन्म स्थान के बारे में कोई स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं है किंतु कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में हुआ था। इनके पिता जी का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।

तुलसीदास बचपन में सब प्यार से रामबोला बुलाते थे। तुलसीदास ने और बच्चों के तरह अपनी मां की कोख में 9 महीने के स्थान पर 1 वर्ष तक रहे और जब इनका जन्म हुआ तो इनके मुंह से जो पहला शब्द निकला वो राम था इसलिए इनका नाम रामबोला पड़ गया।

इनके जन्म के दूसरे दिन ही इनकी माता का निधन हो गया और इनके पिता ने इनको एक चुनिया नाम की दासी को सौप दिया और स्वयं संन्यास ले लिया। जब तुलसीदास 5 वर्ष के थे तो चुनिया का भी निधन हो गया और राम बोला अकेले ही अपना जीवन जीने लगे।

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तुलसीदास और नरहरिदास

जब तुलसीदास बिल्कुल अकेले पड़ गए थे तो उनकी मुलाकात नरहरिदास से हुई। उन्होंने उनका नाम रामबोला से बदल के तुलसीराम रख दिया। नरहरिदास तुलसीराम जी को अपने साथ अयोध्या ले आए। और उन्हें धार्मिक शिक्षा भी दी।

तुलसीदास जी अपने बचपन से ही तीव्र बुद्धि वाले थे। उन्होंने बचपन में ही बिना किसी कठिनाई के गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया जिससे सभी लोग चकित रह गए।

तुलसीदास जी का विवाह

तुलसीदास जी का विवाह 29 वर्ष की आयु में रत्नावली से हुआ था। जब यह काशी में थे तो इन्हें अपनी पत्नी रत्नावली की बहुत याद आने लगी और तुलसीराम व्याकुल होकर उनसे मिलने के लिए राजापुर आ गए। गौना न होने के कारण उनकी पत्नी मायके में थी।

तुलसीराम उनसे मिलने के लिए आधी रात को यमुना नदी पार कर पहुँचे और अपनी पत्नी के कक्ष में छुपकर पहुंच गए। उनकी पत्नी ने लोक लज्जा के भय के कारण क्रोधित होकर उन्हें वापस जाने के लिए कहा। उन्होंने उन पर एक दोहा कसा जो इस प्रकार था-

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव भीत।।

अर्थात-  इस हाड़ मांस के देह से इतना स्नेह और प्रेम, अगर इतना स्नेह और प्रेम राम से होता तो जीवन सुधर जाता।

यह सुनकर तुलसीदास के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी और दुनिया के सुखों को त्याग कर साधु बनने का निर्णय लिया और भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए। यहीं से वह तुलसीराम से तुलसीदास हो गए।

इसके बाद उन्होंने भारत भ्रमण किया। वह बद्रीनाथ, द्वारका, वाराणसी, रामेश्वरम और हिमालय जैसे तीर्थ स्थानों पर गए और वहां श्रीराम की भक्ति में मगन रहे।

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उन्होंने अपने जीवन का अधिक समय वाराणसी, अयोध्या, चित्रकूट में बिताया।

तुलसीदास की रचनाओं में ज्यादातर श्री राम जी का ही उल्लेख देखने को मिलता था। चित्रकूट में 1574 ईस्वी मे उन्होंने रामचरितमानस लिखना प्रारंभ किया और 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में उसे पूरा किया।

उनके अनुसार श्री हनुमान ने उन्हें रामचरित मानस लिखने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं में कई बार हनुमान जी के दर्शन होने का उल्लेख किया है। वाराणसी में उन्होंने भगवान हनुमान के संकट मोचन मंदिर की स्थापना भी की थी।

तुलसीदास को श्री राम के दर्शन

तुलसीदास की रचना गीतावली के अनुसार उन्हें चित्रकूट के अस्सी घाट पर श्री राम के दर्शन भी हुए थे। एक बार कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने के दौरान उन्हें घोड़े की पीठ पर दो राजकुमार दिखाई पड़े लेकिन वह तब समझ नहीं पाए।

और बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वह दोनों हनुमान की पीठ पर राम लक्ष्मण थे। उनके दर्शन न होने के कारण वह दुखी हो गए। उसके अगले ही दिन उनको राम और लक्ष्मण के दर्शन हुए, जब वह चंदन घिस रहे थे तब भगवान राम और लक्ष्मण प्रकट हुए और उन्हें उनका तिलक करने के लिए कहा।

तुलसीदास जी भगवान के दर्शन पाकर वहीं स्तब्ध और अभिभूत हो गए और तिलक लगाना भूल गए। तो श्रीराम ने स्वयं ही तिलक लगा लिया और तुलसीदास के भी माथे पर तिलक लगाया। तुलसीदास की रचना के अनुसार यह उनके जीवन की सबसे सुखद घटना थी जिस पर उन्होंने एक दोहा भी लिखा-

चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।

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तुलसीदास की शिक्षा

तुलसीदास ने हिंदी एवं संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और 6 वेदांग का अध्ययन किया। उन्होंने ज्योतिष और दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्रसिद्ध गुरु शेष सनातन से प्राप्त की थी।

15 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह राजापुर वापस लौट आए थे। वह बचपन से ही तेज बुद्धि और सीखने की क्षमता रखने वाले थे। वह जो भी एक बार पढ़ लेते उसे भूला नहीं कहते थे।

तुलसीदास की मृत्यु

1623 में कई वर्षों तक बीमार रहने के कारण उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। अपने अंतिम समय में वह वाराणसी में गंगा असी घाट के तट पर राम नाम का स्मरण कर रहे थे।

उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय में विनय पत्रिका लिखी थी। ऐसा माना जाता है कि उस पर स्वयं प्रभु श्री राम ने हस्ताक्षर किए थे।

इनकी मृत्यु पर यह दोहा बहुत प्रसिद्ध है-

संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर ॥

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तुलसीदास द्वारा लिखित ग्रंथ और रचनाओं का नाम

श्री रामचरितमानस, बरवै रामायण, गीतावली, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल, सतसई, रामललान्हछू, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली, दोहावली, कवितावली, जानकी मंगल, राम शलाका, रोला रामायण, झूलना, संकटमोचन, छप्पय रामायण आदि

यह अपने काव्य ग्रंथों में सभी प्रकार के रसों का प्रयोग करते थे। इनकी प्रमुख छंद में सोरठा, चौपाई, कुंडलिया आदि हैं और अलंकार में शब्दालंकार और अर्थालंकार का प्रयोग किया गया है।

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Author:

आयशा जाफ़री, प्रयागराज