दिखावटी समाज
मन को छुपा के रख
इस झूठे दिखावटी समाज से
जो मिलने का हक ना दे
जो खिलने का हक ना दे
जो बांध कर रखे
काली रात में काले कमरे मे जंग लगी बेडी के समान
जो अपने मान के लिए करवाए
भूतकाल वर्तमान और भविष्य का बलिदान
जो इस दीवार के बाहर गया
उसे निकाला गया समाज से
पर क्यों फंसे हुए है
हम इसके जाल मे
जो दिखा रहा है
यह अपना महान होने का रूप
और इंसानो मे ला रहा है
विभाजन का एक नया स्वरूप
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About Author:
नाम हेमंत सोलंकी है, निवासी दिल्ली का हूंँ। लेखक बनने का है सपना और शुद्ध कर सको समाज को यह अरमान है अपना। 🙏🏻😊
nice lines
Mashallah
Very thoughtful
waah
बहुत सुंदर कविता हेमंत 👏👏👏👏👏