बेगैरत दुनिया
बहुत मासूम थे अबतक बड़े शातिर बना डाले
बेगैरत ये जहां वाले हमें काफिर बना डाले
जला कर घर मेरा देखो वो कैसे थे शितम ढाये
जकड कर बेड़ियों से तो हमें नाज़िर बना डाले
बस्तियां उजड़ी हैं जब भी मज़लूमों का तो
कहीं गिरजा कहीं मस्जिद कहीं मंदिर बना डाले
बस यही शिकवा रहा तेरे मसीहा से
कैसे कैसे को यहां कादिर बना डाले
अब हालातें मोड़ दो “काजू” कलम से तुम
इत्तिफाकन ने तुझे नासिर बना डाले।
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काजू निषाद गोरखपुर राजधानी