पिता:पहले और बाद
हम नादानियों के चलते
पिता के रहत
उनके जज्बात नहीं समझते,
जब तक समझते हैं
तब तक उन्हें खो चुके होते हैं।
उनके रहते हम खुद को
स्वच्छंद पाते हैं,
उनके जाने के बाद
जब जिम्मेदारियों का बोझ
फैसले लेने की दुविधा में
जब उलझकर परेशान होते हैं,
तब पिता बहुत याद आते हैं।
पिता के रहते जो मुश्किलें
आसान सी दिखती हैं
उनके जाने के बाद
वही पहाड़ नजर आते हैं।
यह भी पढ़ें HINDI KAVITA: भ्रष्टाचार
पिता को खोने का अहसास
तब समझ में आता है
जब वास्तव में हम
पिता बनकर
खुद परेशान होकर भी
लाचार नजर आते हैं।
जीते जी उनके जज्बात से
खिलवाड़ करते रहे,
आज जब उनकी जगह
पर हम आये हैं,
तब पिता की अहमियत का
अहसास करते
बहुत पछताते हैं।
यह भी पढ़ें HINDI KAVITA: इत्तेफ़ाक़
अँखियों के झरोंखों से
अलसाई आँखों की
खुमारी से बाहर आइये,
बिस्तर छोड़़िए
बाहर निकलिए,
सूर्य किरणों का रसपान कीजिए,
प्रकृति से भी
आँखें चार कीजिए ।
उनके बारे में भी कुछ
विचार कीजिये,
लाचार, बीमार का भी
कुछ ख्याल कीजिए।
अँखियों के झरोंखों से ही सही
झाँककर देखिये तो सही
कुछ करिए न करिए
अहसास तो कीजिये,
झरोंखों से भी यदि
कुछ अहसास जाग जाय,
तो बाहर निकल
कुछ कर भी लीजिए।
यह भी पढ़ें
HINDI KAVITA: वादा
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.
यह कविता आपको कैसी लगी ? नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।
कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002
2 thoughts on “HINDI KAVITA: पिता”