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साक्षरता पर निबंध | Essay on Literacy in Hindi
साक्षरता प्रत्येक मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। बढ़ती प्रौद्योगिकी और विकास ने साक्षरता को जीवन का एक अहम हिस्सा बना दिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह नौकरी हो या जीवन यापन करना हर जगह शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक अशिक्षित व्यक्ति का जीवन काफी कठिन होता है क्योंकि वह व्यक्ति पढ़-लिख नहीं सकता, वह किताबों में संचित ज्ञान के बड़े भंडार से अछूता रह जाता है। ऐसे व्यक्ति को अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होता तथा वे तमाम कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते है।
ऐसे व्यक्ति अन्य लोगों की तरह सुख-सुविधाओं तथा नई-नई योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते और एक संकीर्ण जीवन जीने पर विवश हो जाते है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने साक्षरता को लेकर एक रिपोर्ट जारी की जिसके मुताबिक भारत में साक्षरता दर 77.7 फीसदी है वहीं ग्रामीण इलाकों में 73.5 और शहरी इलाकों में यह 87.7 है। इससे साफ पता चलता है कि शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर की कमी है।
हालांकि पुराने जमाने में यह स्थिति नहीं थी क्योंकि उस दौरान पढ़ाई को उतना महत्व नहीं दिया जाता था न ही उस दौरान पढ़ाई की उतनी आवश्यकता थी। लेकिन मौजूदा समय में पढ़ाई एक जरूरत बन चुकी है यही वजह है कि आज प्रत्येक व्यक्ति पढ़ना-लिखना चाहता है इसीलिए सरकार भी लगातार देश के नागरिकों को पढ़ाने के लिए कई नीतियों का क्रियान्वयन कर रही है। पहले जमाने के मुकाबले मौजूदा समय में प्रत्येक क्षेत्र में अब स्कूल खोलें जा चुके हैं। तरह-तरह के सामाजिक संगठन और सरकार मिलकर कई अभियान चला रहे हैं जिससे बच्चों को शिक्षित किया जा सके।
साक्षरता का अर्थ
साक्षरता से तात्पर्य पढ़-लिख सकने की क्षमता से है। आसान शब्दों में कहे तो जिस व्यक्ति को अक्षरों का ज्ञान है तथा व पढ़ने-लिखने में सक्षम है, वह साक्षर कहलाता है। वहीं जो पढ़ने-लिखने में सक्षम नहीं होते वह निरक्षर कहलाते हैं।
निरक्षरता के पीछे के कारण
देश का बहुत बड़ा हिस्सा निरक्षरता से अभी भी जूझ रहा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर निरक्षरता के पीछे के कारण क्या है:-
- परिवार की मानसिकता: परिवार की मानसिकता निरक्षरता का सबसे बड़ा कारण बनती है क्योंकि अभी भी भारत के कई क्षेत्रों में ऐसे माता-पिता हैं जो अपने रूढ़िवादी सोच से ग्रसित है। वे पढ़ाई को व्यर्थ मानते हैं तथा इसकी जगह बच्चों से काम कराए जाने को तवज्जो देते हैं। ऐसा अधिकतर लड़कियों के मामलों में होता है जो माता-पिता यह सोचते हैं कि लड़कियां यदि ज्यादा पढ़-लिख जाएंगी तो वह हाथ से निकल जाएंगी।
- माता-पिता का निरक्षर होना: कई माता-पिता स्वयं अशिक्षित होते हैं जिस वजह से वह पढ़ाई के महत्व को इतनी अच्छी तरह नहीं समझ पाते और वहीं यदि जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं उन्हें यह तक नहीं मालूम होता कि किस तरह बच्चों का एडमिशन और अन्य प्रक्रियाएं करें जिस वजह से वह बच्चों को पढ़ा नहीं पाते।
- परिवारिक समर्थन में कमी: कई बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन परिवार से पर्याप्त समर्थन न मिलने की वजह से वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते।
- गरीबी:- गरीबी भी निरक्षरता का एक बहुत बड़ा कारण है क्योंकि गरीबी की वजह से कई माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने में सक्षम नहीं होते।
इसलिए जरूरी है निरक्षरता के कारणों पर ध्यान दिया जाए तथा उन्हें दूर करने के प्रयास किए जाएं।
साक्षरता को बढ़ावा देने के तरीके
साक्षरता का संचार पूरे देश में करने के लिए कई तरह के तरीके विद्यमान हैं इनमें से अधिकतर तरीकों का इस्तेमाल सरकार और विभिन्न गैर सरकारी संगठन करते आए हैं। साक्षरता को बढ़ावा देने के कुछ तरीके निम्नलिखित हैं:-
- मुफ्त शिक्षा:- देश में कई ऐसे लोग हैं जो गरीबी की वजह से स्कूल की फीस नहीं चुका पाते तथा बच्चों का दाखिला भी इन स्कूलों में नहीं करवा पाते। ऐसे में बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना जरूरी है। इसी कड़ी में साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘उन्नीकृष्णन फैसले’ में 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार का दर्जा दिया था। जिसके बाद साल 2003 में संविधान में शिक्षा के अधिकार के तहत मुफ्त शिक्षा की पेशकश की गई।
- जागरूकता:- कई सरकारी, गैर सरकारी तथा स्थानीय संगठनों द्वारा लगातार शिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से कई अभियान चलाए जाते हैं। इन अभियानों का फायदा होता है कि इससे लोगों को जागरूकता हासिल होती है कि आखिर अपने बच्चों को स्कूल भेजना क्यों जरूरी है। जागरूकता के जरिए ही सभी के मस्तिष्क में शिक्षा के महत्व को डाला जा सकता है इसीलिए इन जागरूकता अभियानों में इजाफा करना जरूरी है।
- छात्रवृत्ति:- जो बच्चे गरीब परिवारों से संबंधित है या बेहद ही पिछड़ी जाति से संबंधित है उनके लिए छात्रवृत्ति, अनुदान व सब्सिडी जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए क्योंकि यह योजनाएं बच्चों को और अधिक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। हालांकि मौजूदा समय में इस तरह की कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन खराब प्रणाली की वजह से कई ऐसे छात्र हैं जिन्हें इन सुविधाओं का लाभ हासिल नहीं होता।
- मुफ्त पुस्तकें:- बच्चों में पढ़ाई को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों द्वारा मुक्त पुस्तकों का आवंटन किया जाना जरूरी है। वैसे आपको बता दें इस सेवा का लाभ सरकारी स्कूलों के छात्रों को मिलता है। सरकारी स्कूल के बच्चों को पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक मुफ्त पुस्तकें आवंटित की जाती है जिसके बाद उन्हें खुद से पुस्तके खरीदनी पड़ती है। हालांकि यह सुविधा प्राइवेट स्कूलों के बच्चों को नहीं मिल पाती।
अतः हम कह सकते हैं कि यदि इन बिंदुओं को ध्यान में रखकर सरकार नीतियां लागू करती है तो देश में ऐसा कोई भी बच्चा नहीं रहेगा जो निरक्षर हो।
विश्व साक्षरता दिवस
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरक्षरता को मिटाने के मकसद से एक अभियान का क्रियान्वयन किया गया जो अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में आज हमारे सामने विद्यमान है। दरअसल, इसकी शुरुआत यूनेस्को के द्वारा 1966 में की गई थी इसका उद्देश्य था कि 1990 तक किसी भी देश में कोई भी व्यक्ति निरक्षर न रहे। इस अभियान को 1995 तक पिछड़े देशों(भारत भी इसमें सम्मिलित है), में चलाया गया। लोगों को शिक्षित करने के लिए यह प्रयास काफी प्रशंसनीय था।
निष्कर्ष
लोगों को शिक्षित करने के लिए सरकार को कई नए नियमों और योजनाओं को प्रकाश में लाना होगा। हालांकि सरकार के अलावा प्रत्येक शिक्षित नागरिक अपने स्तर पर लोगों को शिक्षा प्रदान कर सकता है, विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा शिक्षा को लेकर अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन इन अभियानों में तेजी लाने की जरूरत है। बच्चों में शिक्षा की आदत को बचपन से ही डालने के लिए उनकी प्रारंभिक शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। आज कई ऐसे सरकारी स्कूल और कॉलेज उपलब्ध है जहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इनका फायदा भी लोग उठा सकते हैं।
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा साक्षरता पर निबंध (Literacy Essay in Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
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Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।