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डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवनी | Biography of Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi
डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें पूरे देशभर में बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है, एक प्रबल समाज सुधारक, क्रांतिकारी नेता, विद्वान, दार्शनिक और काफ़ी बड़े दलित नेता थे, जिन्होंने अपनी ईमानदारी और दृढ़ निश्चयता से पूरे भारतीय समाज में क्रांति ला दी।
जब जब भीमराव अंबेडकर का नाम आता है तब तब उनके द्वारा दलित उत्थान के लिए किए गए कार्यों को याद किया जाता है। डॉ. अंबेडकर के जीवन का संकल्प ही था कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित दलित समाज को इस अभिशाप से मुक्ति दिलाएं।
आइए जानते हैं डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महान व्यक्ति के जीवन के बारे में कुछ बातें:-
नाम | डॉ. भीमराव अंबेडकर |
उपनाम | बाबा साहेब अंबेडकर |
पेशा | अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद व समाज सुधारक, भारत के प्रथम कानून मंत्री |
जन्म तिथि | 14 अप्रैल 1891 |
जन्म स्थान | महू, इंदौर (मध्यप्रदेश) |
राशि | मेष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
माता का नाम | भीमाबाई सकपाल |
पिता का नाम | रामजी मालोजी सकपाल |
बहन का नाम | रमाबाई, गंगाबाई, मंजुलाबाई, तुलसाबाई |
भाई का नाम | बाला राव और आनंद राव |
दादा का नाम | मालोजी सकपाल |
धर्म | बौद्ध |
जाति | महार (अनुसूचित जाति) |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | रमाबाई अम्बेडकर और सविता अम्बेडकर |
बच्चे का नाम | यशवंत राव अम्बेडकर |
पसंदीदा चीज़े | किताबें पढ़ना |
समाधि | चैत्य भूमि, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | 6, दिसंबर 1956 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
मृत्यु के समय आयु | 65 वर्ष |
मृत्यु की वजह | मधुमेह |
भीमराव अंबेडकर जयंती | 14 अप्रैल |
डॉ. भीमराव अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन ( Early life of Dr. B.R. Ambedkar)
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 1891 में मध्य प्रांत, जो कि मौजूदा समय में मध्यप्रदेश है, के महू छावनी में हुआ। उनकी जन्मस्थली महू को अब अंबेडकर नगर का नाम दिया गया है और यहां की सैन्य भूमि पर एक विशाल स्मारक बनाया जा चुका है।
उनका जन्म हिंदू धर्म की महार जाति में हुआ। इस जाति को समाज में अछूत माना जाता था। अपनी इसी जाति की वजह से उन्हें सामाजिक, आर्थिक और मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ा। डॉo अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और उनकी माता का नाम भीमाबाई सकपाल था।
वह इन दोनों की 14वीं संतान थे। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। 1894 में जब अंबेडकर के पिता सेवानिवृत्त हुए तो इसके 2 साल बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की।
गौरतलब है, कि भीमराव अंबेडकर का उपनाम ‘अंबेडकर’ न होकर ‘सकपाल’ था, लेकिन उनके पिता ने अपने कोकण प्रांत के गांव ‘आबंडवे’ को उनका उपनाम लिखवाया जिसे उनके शिक्षक ने आसान बनाने के लिए अंबेडकर कर दिया।
अंबेडकर की शादी 15 साल की उम्र में ही 9 साल की रमाबाई से हो गई थी। दरअसल, उस दौर में बाल विवाह काफी प्रचलित थी।
शिक्षा ( Dr. Bhimrao Ambedkar Educational & Qualification)
डॉ. अंबेडकर अनुसूचित जाति के थे और उस दौर में उनकी जाति के बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना काफी कठिन था। लेकिन फिर भी अपनी जाति के अधिकांश बच्चों के मुकाबले वे ज्यादा शिक्षित हुए। अंबेडकर को अपनी पढ़ाई के दौरान कई प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा।
उन्हें और उनके दलित मित्रों को कक्षा के अंदर बैठने की इजाजत नहीं थी। वहीं शिक्षक उनकी पुस्तकों को हाथ तक नहीं लगाते थे। यह सब इतना क्रूर था कि पानी पीने के लिए भी स्कूल के चपरासी उन्हें ऊंचाई से पानी डालते थे और जिस दिन चपरासी अनुपस्थित होते, उस दिन उन्हें बिना पानी के प्यासा ही रहना पड़ता था।
उनकी पढ़ाई में बेहद रूचि थी। उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा मुंबई के एल्फिंस्टन हाई स्कूल से प्राप्त की। इस स्कूल में वे एकमात्र दलित छात्र थे। इसके बाद 1907 में मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद वह एल्फिंस्टन कॉलेज में दाखिल हुए। आगे जाकर उन्हें बड़ौदा राज्य से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई।
इसके तहत उन्हें ₹775 प्रति महीने मिले, जिससे उन्होंने न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह भारतीय समाज, अर्थशास्त्र और इतिहास के अंतर्गत तीन महत्वपूर्ण शोधों को पूरा कर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिल हुए।
यहीं उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट की थीसिस पर काम करना शुरू किया तथा डॉक्टरेट की पढ़ाई पूर्ण की। 1924 में वे भारत लौट आए।
अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन
जब अंबेडकर भारत लौटे तो वह भारतीय समाज में होने वाले जातीय उत्पीड़न को देखकर विचलित हो गए। दरअसल, अंबेडकर बड़ौदा राज्य में सेना सचिव के रूप में नियुक्त किए गए। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें वहां पर जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ा।
इसके परिणाम स्वरूप उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और एक निजी शिक्षक व लेखा कार के रूप में अपना कार्य करते रहे। इसके बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह इस अस्पृश्यता नामक बीमारी के खिलाफ एक सक्रिय आंदोलन छेड़ेंगे।
साल 1924, में ही उन्होंने जाति व्यवस्था को खत्म करने के उद्देश्य से बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना कर दी। इसके अलावा उन्होंने दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों को अदालतों तक पहुंचाकर उन्हें न्याय दिलाया।
वे देश के कई हिस्सों में गए और लोगों को समझाया कि जाति प्रथा एक कुप्रथा है और इसे जड़ से उखाड़ फेंकना जरूरी है। इसके अलावा अंबेडकर ने विभिन्न जातियों और जनजातियों के लिए एक पृथक चुनाव प्रणाली लाने पर जोर दिया। उन्होंने एक समाचार पत्र मूकनायक भी शुरू किया।
वे रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं और जातीय भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इसका उपयोग करते थे।
संविधान का निर्माण और अंबेडकर
जब संविधान का निर्माण हो रहा था तब भीमराव अंबेडकर को संविधान गठन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया। उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सुरक्षा, धार्मिक आजादी, अस्पृश्यता को खत्म करना, भेदभाव उन्मूलन आदि को संविधान में सम्मिलित किया।
उन्हीं के प्रयास स्वरूप संविधान में अनुसूचित जाति, जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसके अलावा जब भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण किया जा रहा था।
तब वह संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। तब उन्होंने ही राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र का सुझाव दिया और आज अशोक चक्र हमारे तिरंगे की शान बढ़ा रहा है।
हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में स्थानांतरण
वैसे तो डॉक्टर अंबेडकर बौद्ध धर्म से बचपन से ही प्रभावित थे। लेकिन साल 1950 में वे बौद्ध धर्म की तरफ आकर्षित हुए और बौद्ध भिक्षुओं के एक सम्मेलन में भाग लेने सिलोन गए, जिसे मौजूदा समय में श्रीलंका के नाम से जाना जाता है।
सम्मेलन से वापस आने के बाद उन्होंने धर्म परिवर्तन का मन बना लिया जिसके बाद 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने नागपुर में अपने समर्थकों के साथ एक औपचारिक धर्मांतरण समारोहों का आयोजन किया और अपनी पत्नी और लाखों सहयोगियों के साथ पारंपरिक तरीके तथा पंचशील अपनाकर बौद्ध धर्म में धर्मांतरण कर लिया।
अपने भाषणों में भी अंबेडकर ने हिंदू धर्म की कुरीतियों की घोर निंदा की है। इसके अलावा उन्होंने बौद्ध धर्म महासभा का भी गठन किया तथा उनकी किताब ‘द बुद्धा एंड हिज धम्म’ का विमोचन हुआ। हालांकि यह उनके मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई।
मृत्यु (Dr. Bhimrao Ambedkar Death)
साल 1954 और 1955 के दौरान अंबेडकर कि सेहत खराब होने लगी। उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया। वे लंबे समय से मधुमेह से पीड़ित थे जिसकी वजह से उनकी आंखों में धुंधलापन और अन्य प्रकार की बीमारियां हुई।
6 दिसंबर 1956 के दिन अंबेडकर जैसे महापुरुष ने दुनिया को अलविदा कहा उन्होंने दिल्ली के अपने घर में अंतिम सांस ली। अंबेडकर की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार भी बौद्ध धर्म के रीति-रिवाजों के तहत किया गया।
बाबासाहेब आंबेडकर के भारतीय समाज में किए गए योगदान को कभी मूल्यों में आंका नहीं जा सकता। लेकिन उनको सम्मान देने के लिए 11 विश्वविद्यालयों के नाम, उनके नाम पर रखे गए हैं।
डॉक्टर अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को हर साल मनाई जाती है। इस दिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है जिसके तहत सरकारी और निजी संस्थानों में अवकाश होता है।
बाबासाहेब के बारे में कुछ रोचक बातें
- बाबासाहेब आंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे।
- वह एकमात्र ऐसे भारतीय हैं जिनकी तस्वीर कार्ल मार्क्स के साथ लंदन के एक संग्रहालय में लगी हुई है।
- भारतीय तिरंगे में अशोक चक्र का विचार डॉक्टर अंबेडकर का ही है।
- अंबेडकर ऐसे नेता थे जिनके ऊपर सबसे अधिक गाने और पुस्तकें लिखी गई हैं।
- दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रतिमाएं बाबासाहेब आंबेडकर की है। उनकी जयंती भी पूरी दुनिया में मनाई जाती है।
- उनकी पहली प्रतिमा 1950 में कोल्हापुर शहर में बनाई गई थी।
- उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में 2 साल के लिए प्रिंसिपल का पदभार संभाला।
- वह भारत के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की।
- अंबेडकर के प्रयासों के फलस्वरूप श्रमिकों के काम के घण्टे को 12-14 से घटाकर 8 घण्टे किया गया।
- उन्होंने महिला श्रमिकों के लिए भी कई कानून बनाए।
- डॉक्टर अंबेडकर को किताबों का बहुत शौक था, जिसके चलते उन्होंने अपनी निजी लाइब्रेरी में 50,000 से अधिक किताबें रखी थी।
Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।