कब तक?
आखिर कब तक हम
बेटियों के साथ हो रही
दरिंदगी को देखते रहेंगे।
कब तक सख्त कदम उठाने का
ढोल पीटते रहेंगे।
सख्त कारवाई और
कड़ी सजा की आड़ में
हम बेटियों की लाशों पर
बेशर्म बन रोते रहेंगे।
आखिर कब तक हम
बेटियों से होती दरिंदगी के बाद
हो रही उनकी मौतों पर,
उनकी वीभत्स लाशों पर
यूँ ही घड़ियाली आँसू बहाते रहेंगे।
कब तक हम बेटी बचाओ और
बेटी दिवस के नाम पर बेटियों को
झुनझुना पकड़ाते रहेंगे।
कब तक हम यूँ ही खुद को
समझाते रहेंगे ।
एक और बेटी के साथ हो दरिंदगी की
सिर्फ़ बाट जोहते रहेंगे,
फिर वही अपना कोरा राग
कड़ी कारवाई ,सख्त सजा का
राग अलापते रहेंगे।
बेटी डर कर जिये या
दरिंदगी का शिकार हो मरती रहे
हम मुगालते का शिकार हो
कब तक खुद को बहलाते रहेंगे।
बटी की दर्द पीड़ा से
खुद को बचाते रहेंगे।
आखिर कब तक…..कब तक
और कब तक।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002