HINDI KAVITA: बलात्कार

Last updated on: October 12th, 2020

बलात्कार

कब तलक अपने भारत की बेटी
इस तरह रोज़ मरती रहेगी
ओ दरिंदों बलात्कार छोड़ो
वरना दुनिया ये डरती रहेगी,

उसकी माता के ह्रदय से पूछो
जिसने नाजों से बेटी हो पाली
कली आँगन के बगिया की थी वो
सींचा बाबुल ने बन कर के माली
वो थी भईया की आंखों का तारा
कर सका ना वो जिसकी रखवाली
चहकी आँगन में बनकर चिड़िया
गोद खेली माँ की बनके गुड़िया
आई दुर्भाग्य की ऐसी रात काली
एक बिटिया थी वो भोली भाली
बिठा पलकों पर जिसने थी पाली
गई बिटिया न जिससे संभाली
लूटा अस्मत को चीरा कलेजा

बेजुबां एक लाश बना डाली
सुना पाए ना वो दर्द अपना
जुबाँ हत्यारों ने काट डाली
न्याय भी मिल न पाया है उसको
रो रहा पिता है हाथ खाली
दब गई सासें अब तो रही ना
दर्द अपना न किसी से कहेगी
ओ दरिंदों बलात्कार छोड़ो
वरना दुनिया ये डरती रहेगी
कब तलक अपने भारत की बेटी
इस तरह रोज़ मरती रहेगी,

दुनिया वालों अब बेटी ना पालो
हो सके तो कोख में ही मार डालो
हो गया जन्म फिर भी जो उसका
तो उसे घर से ना बाहर निकालो
बैठा चारों तरफ है शिकारी
बन चुकी है मानसिकता हत्यारी
पाँव दहलीज से जो निकाला
फिर बचेगी ना बिटिया तुम्हारी
दर्द कितना सहेगी और कब तक

मर ही जाएगी इक दिन बेचारी
बेटी बचाओ ना अब तुम पढ़ाओ
मृत्यु बेदी पर तुम ना चढ़ाओ
घर में रहती है बेटी तुम्हरो
सोचकर ना तुम जी को कुढाओ
जन्म लेने का दुनिया में कब तक
बेटियां दंड भरती रहेंगीं
लुटती अस्मत और दबती हुई चींखें

कब तलक आखिर सहती रहेंगी
बेजुबां बन चुकी लाशें कितनी
दर्द अपना वो किससे कहेंगी
ओ दरिंदों बलात्कार छोड़ो
वरना दुनिया ये डरती रहेगी
कब तलक अपने भारत की बेटी
इस तरह रोज़ मरती रहेगी,

रह गए कितने सपने अधूरे
हो सकेंगे कभी जो न पूरे
कितने सपने थे मन में सजाए
रौंद डाले अस्तित्व ही मिटाए
कितना चीखा कितनो को पुकारा
सुनकर दिल भी ना दहला तुम्हारा
डरो ईश्वर से कुछ तो हत्यारों
किसी की बेटी को तुम यूँ न मारो
हाथ जोड़े विनती करती जाए
करुण पुकार संवेदना समाए
होक निष्ठुर सा पापी बना है

देख तुझको दया भी न आए
किया जो अपराध वो ना सही है
ऐसे पापों का प्रायश्चित्त नहीं है
मर गई दर्द वो सहते सहते
हो गई चुप वो कुछ कहते-कहते
जिस्म अंगारों सा था लगा तपने
कह सकी जो जुबाँ से ना अपने
बंद आँखों से देख दरिंदो को
उसकी अंतर आत्मा रो रही है
दर्द से मुक्त होकर जहां के
चैन की नींद अब सो रही है

भेड़ियों से भरे इस जहाँ में
जुल्म अब न किसी का सहेगी
है नहीं डर उसे अब किसी का
अब वो सबसे सुरक्षित रहेगी
ओ दरिंदों बलात्कार छोड़ो
वरना दुनिया ये डरती रहेगी
कब तलक अपने भारत की बेटी
इस तरह रोज़ मरती रहेगी!

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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊