HINDI KAVITA: बेटी की अभिलाषा

Last updated on: September 27th, 2020

बेटी की अभिलाषा

हो गये क्या निष्ठुर तुम बाबुल
क्या नहीं मुझसे मोह ज़रा सा
आने दो संसार में मुझको
ये है इक बेटी की अभिलाषा,

मैं तो हूँ इक बिटिया कहकर
ऐसे न मुझे तुम दुत्कारो
बेटी होती सौभाग्य से सबको
उसे कोख़ में न मारो
मैं तो हूँ तारण का मार्ग इक
मैया की कोख़ न उजारो
लेकर जन्म माँ की कोख़ से
जीवन को सफ़ल बनाउंगी
गूंजती किलकारियों से अपनी
सारे घर को चहकाऊँगी
बनकर कली तेरी बगिया की
सारा घर आँगन महकाऊँगी
आओगे थककर जो शाम को
प्यार से सिर सहलाऊंगी
मीठी मीठी बातों से अपनी
दूर सारी थकान भगाऊँगी
करदो न ऐ बाबुल मुझपर
ये उपकार ज़रा सा
आने दो संसार में मुझको
ये है इक बेटी की अभिलाषा,

नन्हें-नन्हें कदमों से पास
जब तेरे दौड़ कर आउंगी
तुतलाती भाषा में अपनी
पापा कहकर बुलाऊंगी
छोटी छोटी उंगलियां पकड़कर
सँग तुम्हारे चलना सीख पाऊँगी
मैं तो बनूंगी पापा तुम्हारी
प्यारी गुड़िया रानी
रोज सुनाना मुझको तुम
बचपन में रोज कहानी
ज्यादा नहीं चाहिए मुझको
देदो बस प्यार ज़रा सा
ये है इक बेटी की अभिलाषा,

जाना जब बाज़ार कभी
तो एक खिलौना लाना
न हों पास पैसे गर तुम्हारे
तो तुम्हीं वापस अनजाना
गोद बिठा कर अपनी मुझको
बस प्यार दुलार लूटाना
गिर जाऊं जो कभी मैं अगर तो
अपनी बांहों में उठाना
बिटिया बनकर चाहूं मैं तो
बचपन सँग बिताना
बैठे अपने पापा के कंधे
मेले में मुझे घूमाना
देना हँसा अपनी बातों से
जो आए कभी चेहरे पर निराशा
ये है इक बेटी की अभिलाषा,

होकर के बड़ी इक दिन बाबुल
घर पराये विदा हो जाउंगी
होगा जो घर साजन का मेरा
फिर लौट कभी न आउंगी
काहे की फिर बोझ मैं बाबुल
जब तू ही न मुझे रख पाया
तो क्यों आजतक बिटियों को
माँ की कोख़ में कितनों ने गिराया
जिसने सजाया घर साजन का
आँगन बाबुल का महकाया
फिर भी कहते दुनिया वाले
बेटी तो धन है पराया
बेटी बहन पत्नी माँ बनकर
अनमोल रिश्तों को जिसने निभाया
केसा ये समाज है जिसने आज भी
बेटियों को ठुकराया
रखदो कभी सिर पर बिटियों
ममता का हाँथ भरा सा
हाँथ जोड़ विनती है करती
ये है इक बेटी की अभिलाषा!

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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊