ओ प्रिये!
ओ प्रिये!ओ प्रिये!
तू भी लौट के आ जा
अब तेरी ही याद सताए।
तेरे बिन ये मन पाखी
अब तो लुटता जाए।।
हरपल ये तेरी आस में
अब बैठा है नैना लगाए।
अब तेरी ही याद सताए।।
अपनी सुध और बुध
अब यह भूल गया है।
इसे कुछ भी याद ना आए
अब तेरी ही याद सताए।।
कौन था मैं कौन हूँ मैं
और यह सारा जग क्या है।
यह कुछ भी जान ना पाए
अब तेरी ही याद सताए।।
जब से मुझे तू छोड़ गया
जीवन ये पतझड़ हो गया।
पनघट भी अब रुलाये
अब तेरी ही याद सताए।।
कैंसे कहूँ किस्से कहूँ
तेरे बिन एक पल न रहूँ।
ये जीवन धारा टूटी जाए
अब तेरी ही याद सताए।।
जीवन में अब सूनापन है
तू नहीं क्या अपनापन है।
हर सांस में तुम ही समाए
अब तेरी ही याद सताए।।
मन भौंरा कली कली डोले
कोई कली मन में ना खिले।
दर दर यह डोलता जाए
अब तेरी ही याद सताए।।
ओ प्रिये!ओ प्रिये!
ओ प्रिये!ओ प्रिये!
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About Author:
डॉ.राजेन्द्र सिंह”विचित्र’, असिस्टेंट प्रो.,तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश