HINDI KAVITA: लाँछन

लाँछन

औंधे मुँह
पीछे की ओर बंधे हाथ
बेजान शरीर
और लोगों की खुशियाँ मनाती भीड़
देखकर मैं भौचक्का रह गया।

मैं समझ नहीं पाया कि
जाने अनजाने उन्मादी भीड़ ने
ये कैसा गुनाह कर डाला,
एक निर्बल,असहाय,अकेली महिला को
बिना किसी आरोप ,सबूत के
डायन होने की अफवाह फैलाकर
पीट पीटकर मार डाला।

और अब खुशियाँ मना रहे हैं ऐसे जैसे
कितना बड़ा काम कर डाला,
मर्दानगी का सबूत दे डाला,
एक जीती जागती महिला को
लाँछन लगाकर
मौत दे डाला।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002