कुहासा
क्या कहूँ?
मेरी जीवन में तो
हमेशा ही छाया रहता है,
बेबसी, लाचारी, भूख का
कभी न मिटने वाला कुहासा।
औरों का तो छंट भी जाता है
मौसमी कुहासा,
पर मेरा कुहासा तो
छँटने का नाम ही नहीं लेता।
ऐसा लगता है
ये कुहासा भी जैसे
जिद किये बैठा है,
जो आया है मेरे जन्म के साथ
और पूरी निष्ठा से मेरे साथ
यारी निभा रहा है,
जैसे प्रतीक्षा कर रहा है
मेरे अंत के साथ ही छँटने की।
तुम्हें देखकर
तुम्हें देखकर
सारी थकान, मन का बोझ
छूमंतर हो जाता है,
तन मन में उत्साह, उल्लास
सा छा जाता है।
जब से तुम आई हो
मेरे घर आँगन में
खुशियों का भंडार
भर गया है मेरा,
अब तो बस तुम्हें देखता हूँ
खूब प्रफुल्लित होता हूँ
ऐसा लगता है जैसे
सातवें आसमान पर बैठा हूँ।
अब तो कुछ नहीं चाहत मेरी
तुम्हें देखकर
हर चाहत भूल जाता हूँ,
बस यूँ ही फुदकती रहना तुम
यही अरमान दिल में रखता हूँ।
विकास दिवस
आइए विकास दिवस मनायें
दिवस मनाने की भी
औपचारिकता निभाएं।
क्योंकि औपचारिकता निभाने के
तो हम उस्ताद हैं,
विकास की गंगा का
मीठा मीठा स्वाद है।
विकास तो विकास है
अपना हो या समाज
या फिर राष्ट्र का।
आखिर विकास तो जरूरी है
हम सबकी मजबूरी है,
इसलिए विकास का रोडमैप
बहुत जरुरी है,
मेरे घर से होकर
उसका निकलना जरूरी है।
तभी तो विकास की गंगा बहेगी,
समाज ,राष्ट्र का विकास
तो होता रहेगा,
मेरी तिजोरी का भर जाय
तभी तो मेरा विकास होगा।
तो आइए !विकास दिवस मनाएं
अपने विकास का रोडमैप
मिलकर बनाएं।
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Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002