सपने
सपने टूटेण
बिखरता इंसान
संभले कैसे?
सपनों का क्या
बनते बिगड़ते
समय चक्र।
खुद सँभलो
टूटते सपनों से,
हौसलों संग।
बिखरोगे तो
सपनों का टूटना
रुक जायेगा?
धैर्य रखिए
परीक्षा की ये घड़ी
बीत जायेगी।
धरोहर
हम सबके लिए
हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं,
जिस तरह हम सब
रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को
सम्मान देते आ रहे हैं
ठीक उसी तरह
बुजुर्गों का भी सम्मान
बना रहना चाहिए।
मगर यह विडंबना ही है
कि आज हमारे बुजुर्ग
उपेक्षित ,असहाय से
होते जा रहे हैं,
हमारी कारस्तानियों से
निराश भी हो रहे हैं।
मगर हम भूल रहे हैं
कल हम भी उसी कतार की ओर
धीरे धीरे बढ़ रहे हैं।
अब समय है संभल जाइए
बुजुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से
अपने आपको बचाइए।
बुजुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे
छाँव ही है,
उनकी छाँव को हम अपना
सौभाग्य समझें,
उनकी सेवा के मौके को
अपना अहोभाग्य समझें।
सबके भाग्य में
ये सुख लिखा नहीं होता,
किस्मत वाला होता है वो
जिसको बुजुर्गों की छाँव में
रहने का सौभाग्य मिलता।
हम सबको इस धरोहर को
हर पल बचाने का
प्रयास करना चाहिए,
बुजुर्गों की छत्रछाया का
अभिमान करना चाहिए।
सच मानिए खुशियां
आपके पास नाचेंगी,
आपको जीवन की तभी
असली खुशी महसूस होगी।
जलन/ईर्ष्या
लोगों की आदत में
शुमार है जलने की,
कोई आप से जलता है
तो कोई आप के परिवार से
और तो और
कोई आपके बच्चों से भी
जलन रखता है
इतना तक ही हो
तो भी कोई बात नहीं,
लोग तो आपसे, आपके परिवार से
आपके विकास ही नहीं
आपके सुखी जीवन से भी
जलते हैं।
आपका हंसता खेलता जीवन
उन्हें रास कहाँ आता,
आप का आचरण, श्रम और
संतोष उन्हें कहाँ दिखता
आपका सुखमय जीवन
लोगों को बहुत चुभता।
अपना तो उन्हें कभी भी
कुछ भी गलत नहीं लगता,
आलस्य और ईर्ष्या से उनका
बड़ा गहरा रिश्ता।
बस ! उनका तो
एक सूत्रीय कार्यक्रम है
लोगों से जलन रखना
और अपने मुँह मियां
मिट्ठू बनना ही आदत है।
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Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002