व्यंग्य: माँ के गर्भ से बेटी का पत्र
जब से मैं माँ के गर्भ में आई हूं तबसे उस पल की प्रतीक्षा में हूँ कि कब मुझे अस्तित्व विहीन किया जायेगा। कुछ लोगों को मेरी सोच अच्छी नहीं लग रही होगी, पर कुछ लोगों का अपराधबोध जरुर कम हो रहा होगा, होना भी चाहिए। क्योंकि हम तो आपके ही नहीं आपके परिवार, समाज के लिए बोझ जो बनने वाले हैं। लिहाजा मुझे ये प्रतीक्षा करना भी भारी पड़ रहा है। जितना जल्दी हो सके मुझे अवांछनीय से छुटकारा पाकर गंगा नहा लीजिए।
मेरा ये खुला पत्र सिर्फ अपने बाप के लिए ही नहीं है बल्कि धरती के हर पुरुष और समाज के लिए है। जो लोग बेटी बचाओ की हुंकार भर रहे हैं,वे बेवकूफ हैं या शायद उनमें अकल नाम की कोई चीज नहीं है।
कारण भी मैं ही बता रही हूं। सबसे पहले तो मेरी माँ को मेरे बोझ से छुटकारा मिल जाएगा, जिसमें सबकी ख़ुशी है। फिर मेरे जन्म, परवरिश, शिक्षा शादी के खर्चों से मुक्ति मिल जाएगी। मेरे धरती पर रहने तक इन चिंताओं के साथ मेरी सुरक्षा की बड़ी चिंता का बोझ भी नहीं रहेगा। परवरिश और पढ़ाई पर खर्च होने वाले धन का उपयोग अपने बेटे पर कर सकेंगे, भले ही वो कैसा हो? लेकिन कम से कम आपकी संपत्ति का वारिस तो बनेगा, आपकी चिता को मुखाग्नि देकर आपको मोक्ष तो दिलायेगा । भले ही जीते जी आपको एक गिलास पानी तक न दिया हो।
शादी के लिए दर दर भटकना नहीं पड़ेगा, किसी की चौखट पर सिर नहीं झुकाना पड़ेगा। दहेज के भूखे भेड़ियों का डर तो नहीं रहेगा। बेटी को दहेज की खातिर मार डालने, जला देने या घर से निकाल देने की चिंता तो नहीं रहेगी।
फिर धरती पर रही तो आखिर शादी तो आप कर ही देंगे, तो मैं भी माँ बनूँगी ही। फिर वही डर कि बेटी हुई तो…..।
अब जो एक और बड़ा फायदा है, वो ये कि मां, बहन, बेटी,बहू, सांस, नन्द,भाभी, चाची,बुआ, मौसी, नानी आदि आदि रिश्तों का झंझट ही खत्म।आप सबके तो दोनों हाथों में लड्डू होंगे।
क्योंकि जब बेटी होगी ही नहीं, तब बहू कहां से होगी, जब बहू ही नहीं होगी तो फिर बेटियों का सिलसिला ही खत्म, और तब कोई रिश्ता ही न होगा तो सहेजकर रखने की जरूरत भी नहीं होगी और न ही आप सबकी परेशानियां भी बढ़ सकेंगी। न मान, न मर्यादा की चिंता होगी। न बेटी के जन्म की चिंता, न परवरिश, पढ़ाई, विवाह और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों का डर।
और अंत में जो सबसे बड़ा फायदा होगा वो ये का आप भी एक एककर इस दुनिया से विदा हो जायेंगे, बल्कि मुक्त हो जायेंगे। फिर एक समय ऐसा हो जायेगा कि धरती से पुरुषों का भी अस्तित्व मिट जायेगा। धरती मां को भी बड़ा सूकून मिल जायेगा। क्योंकि बेटियों को मिटाने के चक्कर में धरा से इंसान का नामोनिशान मिट जायेगा। तब बेटी बचाओ अभियान भला चलाने के लिए कौन रह जायेगा या ये भी कह सकते हैं इस अभियान का औचित्य क्या रह जाएगा।
बस अंत में आप सभी से अपील है कि बेटी बचाओ नहीं बेटी मिटाओ अभियान चलाइए और हर समस्या से छुटकारा पाइए।
माँ के गर्भ से आप सबकी बेटी
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Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.