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संत सूरदास की जीवनी | Surdas Biography in Hindi
कृष्ण भक्ति गीत लिखने वाली सूरदास एक महान कवि, संगीतकार और संत थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अत्यंत ही सुंदर और मर्मस्पर्शी भाव से श्री कृष्ण का वर्णन किया है। सूरदास 15 वीं शताब्दी के महान वात्सल्य और शांत और श्रृंगार रस का प्रयोग करने वाले कवि थे।
नाम | सूरदास |
जन्म | 1478 (कोई स्पष्टता नहीं) |
जन्मस्थान | रुनकता |
पिता का नाम | राम दास सारस्वत |
गुरु | वल्लभाचार्य |
विवाह | अविवाहित |
मृत्यु | संवत् 1620 (कोई स्पष्टता नहीं) |
कार्यक्षेत्र | कवि |
रचनाएं | सूरसागर, सुरसारावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती, ब्याहलो। |
“चरन कमल बंदौ हरि राई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई।।
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तेहि पाई।।”
अर्थात- सूरदास जी का कथन है कि भगवान श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी ऊँचे पर्वत को आसानी से लाँघ लेता है, अंधे व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरा व्यक्ति सुनने में समर्थ हो जाता है, गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है और गरीब व्यक्ति अमीर हो जाता है। ऐसे परम दयालु भगवान श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कौन नहीं करेगा।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
संत सूरदास जी के जन्म के बारे में कोई पुख्ता जानकारी तो नहीं है लेकिन कुछ साहित्यकारों और ग्रंथों के आधार पर सूरदास जी का जन्म 1478 में रुनकता नाम के एक गांव में हुआ था जो कि अब मथुरा, आगरा के किनारे पर स्थित है।
सूरदास जी के पिता का नाम रामदास था वह एक महान गीतकार थे।
बहुत सारी रचनाओं में उनके जन्म से ही अंधे होने के बारे में बताया गया है। श्रीनाथ भट्ट की संस्कृत वार्ता मणिपाला और श्री गोकुलनाथ की निजवार्ता ग्रंथों के अनुसार सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे। लेकिन इस बारे मे कोई साक्ष्य प्रमाण नही है।
कुछ ग्रंथों के अनुसार जिस प्रकार सूरदास ने राधा और कृष्ण के रूप और सुंदरता का वर्णन किया है वह किसी अंधे के लिए संभव प्रतीत नही होता है। श्यामसुंदर दास के अनुसार सूरदास जी जन्म से अंधे नहीं थे क्योंकि जिस प्रकार से उन्होंने श्रृंगार और रंग रूप आदि का वर्णन किया है वह कोई जन्म से अंधा व्यक्ति नहीं कर सकता।
सूरदास और वल्लभाचार्य
अपनी वृंदावन धाम की यात्रा के दौरान सूरदास जी के मुलाकात वल्लभाचार्य से हुई। और इनके बीच गुरु शिष्य का संबंध बन गया वल्लभाचार्य ने इन्हें शिक्षा और सही मार्गदर्शन दिया। कुछ ग्रंथों के अनुसार श्री वल्लभाचार्य सूरदास के दिन में केवल 10 दिन का अंतर था इसलिए सूरदास का जन्म 1534 विक्रम संवत की वैशाख शुक्ल पंचमी को भी माना जाता है। वल्लभाचार्य सूरदास जी को अपने साथ पर्वत मंदिर ले जाया करते थे और साथ में श्रीनाथ सेवा और गायन किया करते थे। वल्लभाचार्य से ही उन्हें भागवत लीला का गुणगान करने का मार्गदर्शन मिला था। श्री कृष्ण के वर्णन और उनके भक्ति गीत लिखने से पहले यह केवल विनय के पद लिखा करते थे इनके पदों को सहस्राधिक कहा जाता था जो कि अब सूरसागर नाम से प्रसिद्ध है।
सूरदास और कृष्ण भक्ति
वल्लभाचार्य के साथ रहते हुए सूरदास पूरी तरह कृष्ण भक्ति में डूब गए थे। उन्होंने अपनी सारी रचनाएं ब्रजभाषा में लिखी इसी कारण उन्हें ब्रजभाषा का सबसे महान कवि कहा जाता है। सूरदास जी ही नहीं, ब्रजभाषा में ही रसखान,घनानंद, बिहारी, रहीम आदि ने भी लिखा।
एक कथा के अनुसार सूरदास श्रीकृष्ण की भक्ति में इतना डूब गए थे कि वह कुएं तक में गिर गए जिस पर स्वयं श्री कृष्ण ने उनकी जान बचाई। श्री कृष्ण जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें एक वरदान मांगने को कहा जिस पर सूरदास ने कहा कि मैं उन्हें प्रभु के दर्शन होने के बाद सब कुछ मिल चुका है और वह प्रभु के दर्शन के बाद फिर से अंधे होना चाहते हैं क्योंकि वह अपने प्रभु के अलावा किसी और को नहीं देखना चाहते थे।
सूरदास और सम्राट अकबर की मुलाकात
सूरदास के गीत भक्ति गीत और भजन अपना दूर-दूर तक प्रसिद्ध होने लगे थे जिस पर स्वयं राजा अकबर उनसे मिलने के लिए गए थे। सम्राट अकबर से सूरदास जी की मुलाकात, संगीतकार तानसेन ने मथुरा में करवाई थी, तानसेन अकबर के नौ रत्न संगीतकारो में से एक थे। सूरदास के सुंदर श्री कृष्ण गीत और पदों ने सम्राट अकबर को मंत्रमुग्ध कर दिया था।
इस कथा के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि राजा अकबर ने उन्हें स्वयं का वर्णन करने की प्रार्थना की, लेकिन सूरदास ने केवल अपने प्रभु भगवान श्री कृष्ण के अतिरिक्त किसी और का वर्णन करने से मना कर दिया।
सूरदास जी की रचनाएं
सूरसागर, सुरसारावली, साहित्य-लहरी, नल दमयंती और ब्याहलो यह पांच ग्रन्थ सूरदास जी द्वारा लिखे हुए बताए जाते हैं-
सूरसागर
सूरसागर सूरदास जी की सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है इसमें सूरदास जी ने श्री कृष्ण की सुंदरता और लीलाओं का वर्णन किया है। ऐसा कहा जाता है कि सूरसागर में लगभग एक लाख के करीब पद है। परंतु केवल 5 हजार पद ही प्राप्त हुए हैं अब तक। सूर सागर में भक्ति रस की प्रधानता है।
सूर सारावाली
यह ग्रंथ वृहद होली गीत के रूप में लिखी गई थी। इसमें कुल 1107 छन्द है।
साहित्य लेहरी
श्रृंगार रस की प्रमुखता वाली साहित्य लहरी में लगभग 118 पद है इस ग्रंथ में सूरदास जी ने वंश वृक्ष के बारे में वर्णन किया है इसमें सूरदास जी का नाम सूरज दास और स्वयं को उन्होंने चंदबारदायी का वंशज बताया, जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी।
नल दमयंती
नल दमयंती में महाभारत के नल और दमयंती की गाथा है। इसमें जब युधिष्ठिर अपना सब कुछ गंवा कर वनवास करते हैं तब नल और दमयंती की कहानी ऋषि युधिष्ठिर को सुनाते है।
ब्याहलो
ब्याहलो भी नल दमयंती की तरह कृष्ण भक्ति से अलग ग्रंथ है। यह भी उनके प्रसिद्ध ग्रंथों में से एक है।
सूरदास जी की मृत्यु
सूरदास जी की मृत्यु के बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है। बहुत से विद्वानों के अनुसार उनका निधन 1642 में ब्रज में हुआ था। सूरदास हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक माने जाते हैं। जिस प्रकार अपनी रचनाओं में इन्होंने श्री कृष्ण का वर्णन किया है उससे स्पष्ट होता है कि वह उनके कितने बड़े भक्त और उपासक थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया।
Author:
आयशा जाफ़री, प्रयागराज