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बीरबल की जीवनी | Birbal Biography in Hindi
आपने बचपन में कई कहानियों और लोक कथाओं में बीरबल के बारे में तो जरूर सुना होगा। बीरबल अपनी बुद्धिमता, हाजिर जवाबी और तर्क वितर्क करने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं।
यही वजह है कि वह शहंशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। आइए जानते हैं चतुर बीरबल के जीवन से संबंधित कुछ रोचक जानकारियां:-
नाम | बीरबल |
अन्य नाम | पंडित महेश दास दुबे |
जन्म वर्ष | 1528 ई. |
मृत्यु वर्ष | 1586 ई. |
जन्म स्थान | सीधी, मध्यप्रदेश |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पिता का नाम | गंगादास |
माता का नाम | अनाभा देवी |
भाई का नाम | रघुबर |
पेशा | दरबारी और सलाहकार |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | उर्वशी देवी |
बच्ची का नाम | सौदामिनी दूबे |
धर्म | हिंदू, दीन-ए-इलाही |
बीरबल का प्रारंभिक जीवन
बीरबल का असल नाम पंडित महेश दास दुबे था। बीरबल बचपन से ही बेहद चतुर और बुद्धिमान थे। और इसी बुद्धिमता ने उन्हें आगे जाकर प्रसिद्धि दिलाई। बीरबल का जन्म 1528 में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
यदि बात करें बीरबल के जन्म स्थान की तो इसे लेकर लोगों के अलग-अलग मत हैं। दरअसल, कुछ विद्वानों का जहां कहना है कि बीरबल आगरा के निवासी थे, वहीं कुछ का कहना है कि वह कानपुर के घाटमपुर तहसील के थे। कुछ का कहना है कि वह दिल्ली के निवासी थे, तो कुछ कहते हैं कि मध्य प्रदेश के सीधी जिले में वे निवास करते थे।
हालांकि ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि वह मध्य प्रदेश के सीधी जिले में स्थित घोघरा गांव से संबंधित थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीरबल का जन्म मध्यप्रदेश के सीधी जिले में ही हुआ था तथा आज भी बीरबल की पीढ़ियां यहां निवास करती हैं। बीरबल के पिता का नाम गंगादास था तथा उनकी माता का नाम अनाभा देवी था।
बीरबल की शादी उर्वशी देवी के साथ हुई थी। उनकी एक पुत्री भी थी जिनका नाम सौदामिनी दुबे था।
बीरबल एक बेहद ही समझदार और सुलझे हुए व्यक्ति होने के साथ ही संस्कृत, हिंदी, और पर्शियन भाषा के ज्ञानी भी थे। उनके द्वारा लिखी गई ब्रजभाषा में कई कविताएं विद्यमान है। इसके साथ ही वे एक साहित्यकार भी थे। बीरबल एक अच्छे इंसान भी थे क्योंकि वह हमेशा गरीबों की मदद में लगे रहते थे।
बीरबल की बादशाह अकबर से मुलाकात
- माना जाता है कि 1556 से 1562 के बीच बादशाह अकबर ने बीरबल को कवि के रूप में अपने दरबार में नियुक्त किया था। बीरबल की बादशाह अकबर से कैसे मुलाकात हुई इसे लेकर भी कई विद्वान और इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं।
बीरबल की मौजूदा पीढ़ी का कहना है कि बीरबल पहले रीवा के महाराज के दरबार में बतौर कवि के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने ही बादशाह अकबर को बीरबल उपहार स्वरूप दिया था। हालांकि कई इतिहासकार इस तथ्य से इनकार करते हैं। - वहीं उन दोनों की मुलाकात के संबंध में एक अन्य कथा प्रचलित है जिसमें यह कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने एक बार अपने नौकर को ढाई सौ ग्राम चूना लाने पनवाड़ी की दुकान भेजा। चूना ले जाते समय बीरबल ने नौकर से कहा कि, “तेरे पान से बादशाह की जीभ कट गई होगी इसलिए वे यह सारा चूना तुझे खिलाएंगे, इसलिए अपने साथ घी भी लेते जाना।
जब नौकर दरबार में चूना लेकर पहुंचता है तो बीरबल ने जैसा कहा था वैसा ही होता है। बादशाह उसे चूना खाने का आदेश सुनाते हैं। चूना खाने के तुरंत बाद ही नौकर घी भी पी लेता है। जब अगले दिन बादशाह अकबर नौकर को देखते हैं तो वह उसे भला-चंगा देखकर हैरान रह जाते हैं तथा उससे पूछते हैं कि ऐसा कैसे हुआ। तब वह बादशाह को बीरबल की सारी बातें बताता है। बादशाह अकबर बीरबल की समझदारी से प्रभावित हो जाते हैं और ऐसे ही उन्हें अपने दरबार में स्थान देते हैं।
बीरबल और अकबर की जोड़ी
बीरबल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। वह न सिर्फ एक अच्छे कवि थे बल्कि बेहद बुद्धिमान भी थे। वहीं दूसरी ओर बादशाह अकबर पढ़े लिखे नहीं थे। इसकी वजह यह थी कि उन्हें उनके पिता के अकस्मात देहांत के बाद ही किशोरावस्था में राजा बना दिया गया था।
फिर भी वह समझदार लोगों की काफी कद्र किया करते थे। बादशाह अकबर समझदारों से तर्क-वितर्क करते थे तथा उन्हें परखने की क्षमता रखते थे। यही वजह थी कि वे बीरबल की बुद्धिमता से भी प्रभावित हुए। अकबर और बीरबल की जोड़ी सबसे मजबूत जोड़ियों में से थी।
बीरबल सिर्फ अकबर के दरबार में एक वज़ीर ही नहीं थे बल्कि अकबर के सबसे करीबी मित्र भी थे। अकबर बीरबल से कई तरह के प्रश्न पूछते रहते थे, जिन प्रश्नों का उत्तर बीरबल झटपट दे दिया करते थे। कई बार तो न्याय के फैसले को सुनाने से पहले भी अकबर बीरबल की राय लेते थे और उसके बाद ही कोई फैसला सुनाते थे।
बीरबल की मृत्यु
बीरबल की मृत्यु अफ़ग़ानियों ने छल के साथ रात में आक्रमण करके की। दरअसल अफ़ग़ानी बाजार में कुछ लोग चालबाजी कर लोगों को लूट रहे थे तथा उनसे जबरन वसूली भी कर रहे थे। जिसके बाद ही शहंशाह अकबर ने उनके साथ युद्ध का ऐलान कर दिया और अपने बहुत खास जैन खान को वहां युद्ध के लिए भेज दिया। लेकिन जैन अफ़ग़ानियों की रणनीति से वाक़िफ़ नहीं थे जिस वजह से उनकी सेना को काफी दिक्कतें उठानी पड़ी।
बाद में, जैन खान ने बादशाह अकबर से कहा कि वे युद्ध जीत गए हैं लेकिन उन्हें थोड़ी मदद की जरूरत है। अकबर को लगा कि वह युद्ध जीतने ही वाले हैं और ऐसे में यदि वहां बीरबल को भेजा जाता है तो बीरबल के हिस्से में जीत का परचम आएगा। यही सोचकर उन्होंने बीरबल को वहां भेजा। बीरबल अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ वहां गए तो उन्होंने पहाड़ों से छिपकर अफ़ग़ानी सेना पर आक्रमण किया जिससे अफ़ग़ानियों को काफी क्षति उठानी पड़ी।
लेकिन जैसे ही अंधेरा छा गया वैसे ही बीरबल ने युद्ध को रोक दिया तथा अगले दिन युद्ध की रणनीति तैयार करने में जुट गए। अकबर चाहते थे कि वे युद्ध जल्दी जीत जाएं जिसके लिए उन्होंने हक़ीम अबुल को सेना के साथ भेजा। लेकिन जैन खान, बीरबल और अबुल फतेह की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी, जिस वजह से उन दोनों ने बीरबल के युद्ध की रणनीति को मानने से इंकार कर दिया तथा अलग-अलग रास्तों से युद्ध के लिए चले गए।
बीरबल ऐसे में अकेले पड़ गए और उन्होंने अगले दिन आक्रमण के लिए एक लंबा सफर तय किया। आगे जाकर जब वह अपनी सेना को लेकर रुके तो वहां पहले से ही दुश्मन उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही रात का अंधेरा छाया अफ़ग़ानी सेना ने बीरबल की सेना को चारों तरफ से घेर लिया तथा उन पर पत्थर और तीर बरसाने लगे। इससे कई सैनिकों तथा जानवरों के बीच भगदड़ मच गई और कई सैनिक घायल हो गए। इसी में बीरबल को भी एक तीर लग गया और सही समय पर कोई भी सहायता न मिलने की वजह से उनकी वहीं मृत्यु हो गई। बीरबल की मृत्यु 58 वर्ष की आयु में हुई थी।
सबसे दुख की बात यह थी कि बीरबल की मृत्यु के बाद उनका शव तक नहीं मिला था। जैसे ही बादशाह अकबर को बीरबल की मृत्यु के बारे में पता चला वह सबसे जुदा-जुदा रहने लगे। उन्होंने बीरबल की मृत्यु को उनके जीवन की सबसे भीषण त्रासदी बताया। उनकी मृत्यु के बाद अकबर की दरबार से रुचि खत्म हो गई तथा वे कोई भी काम नहीं देखते थे, न ही चर्चाओं में शामिल होते थे। इस दुख में अकबर का समस्त परिवार भी शामिल था। पूरे राज्य का कामकाज काफी समय तक बंद रखा गया।
अकबर को सबसे बड़ा दुख इस बात का था कि बीरबल का शव नहीं मिला, जिस वजह से वे काफी समय तक अस्थिर रहे। इस सदमे से उबरने के लिए वह पहाड़ियों में बीरबल का शव खोजने की जिद पर अड़े थे। वे चाहते थे कि बीरबल का अंतिम संस्कार अच्छे से हो जाए। लेकिन दरबारियों ने यह कहा कि बीरबल का शव सूर्य की रोशनी से ही पवित्र हो जाएगा जिसके बाद अकबर ने काबुल जाकर शव ढूंढने का ख्याल त्याग दिया।
कई बार दरबार में अफवाह उड़ी कि बीरबल जिंदा हैं तथा वे सन्यासी होकर फलां जगह दिखाई दिए हैं। जैसे ही ये बातें अकबर को पता चलती, वे तुरंत अपने सैनिकों की टुकड़ियों को वहां भेज देते। कई सालों तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा।
बीरबल से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां
- पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने बीरबल की याद में सामुदायिक भवन बनवाया था।
- बीरबल को ‘राजा’ और ‘कविराय’ की उपाधि, अकबर द्वारा प्रदान की गयी थी।
- बीरबल ने मध्य प्रदेश के रीवा जिले में राजा रामचंद्र के दरबार में ब्रह्मा कवि के नाम से काम किया था।
- ‘बीरबल’ यह नाम अकबर ने दिया था क्योंकि महेशदास की बुद्धि यानी कि ‘बीर’ में बल यानी ताकत है; इसलिए अकबर ने उनका नाम ‘बीरबल’ रखा।
- अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक धर्म बनाया था। अकबर के बाद बीरबल ने भी इस धर्म को अपनाया।
- बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर ने घोषणा की कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
- बीरबल सिर्फ एक कवि की नहीं बल्कि कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे उन्हें संस्कृत, हिंदी और पर्शियन भाषा बहुत अच्छे तरीके से आती थी।
Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।