स्वामी विवेकानंद की जीवनी

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi

पूरा नामनरेंद्र विश्वनाथ दत्त
जन्म12 जनवरी 1863
जन्म स्थानकोलकाता
पिता का नामविश्वनाथ दत्त
माता का नामभुवनेश्वरी देवी
मठवासी बनने पर नामस्वामी विवेकानंद
विवाहअविवाहित
शिक्षा1884 में बीए की डिग्री
मृत्यु4 जुलाई 1902
History of Swami Vivekananda | Biography of Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद उच्च विचार, सरल जीवन, आध्यात्मिक ज्ञान और साकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए हैं व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद न केवल मानव जाति बल्कि पशु पक्षियों और प्रकृति से प्रेम करने वाले व्यक्ति थे। वह सभी के साथ भाईचारे और प्रेम से रहने की शिक्षा दिया करते थे। उनके जाने के बाद लोग उनके आदर्श और उनके द्वारा बताई गई बातों का पालन आज भी कर रहे है।

स्वामी विवेकानंद का निजी जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्र विश्वनाथ दत्ता था परंतु बचपन में सभी उनको प्यार से नरेंद्र नाम से बुलाया करते थे। उनके 9 भाई बहन थे। उनके पिता का नाम विश्वनाथ तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके पिता कोलकाता हाईकोर्ट के एक सफल वकील थे।

उनकी माता एक धार्मिक महिला थी जिन्हें रामायण, महाभारत और अन्य धर्म ग्रंथों का ज्ञान था। उन्होंने अपनी माता से धार्मिक शिक्षा प्राप्त की, जिसका इनके ऊपर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने घर में ही ध्यान केंद्रित करना व धार्मिक शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया।

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स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा (Swami Vivekananda Education)

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में रुचि थी। वर्ष 1871 में नरेंद्र जी का दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में कराया गया था। लेकिन वर्ष 1877 में जब वह तीसरी कक्षा मे थे उनके परिवार को अचानक ही रायपुर जाने की वजह से उनको शिक्षा छोड़नी पड़ी। 1879 में उनका परिवार कोलकाता वापस आ गया और उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1884 में बीए की डिग्री प्राप्त की। इसके साथ ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई भी की।

1884 में स्वामी विवेकानंद जी के पिता की मृत्यु हो गई और उनके नौ भाई बहनों की जिम्मेदारी नरेंद्र जी पर आ गई। उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ अपने भाई बहनों की जिम्मेदारी उठाई, शायद इसी कारण वह हमेशा अविवाहित रहे।

1889 में उन्होंने दोबारा दाखिला लिया और पढ़ाई में तेज होने के कारण उन्होंने 3 साल का कोर्स केवल 1 वर्ष में पूरा कर दिया।

पढ़ाई के साथ-साथ नरेंद्र जी को धर्म इतिहास खेल के गीत आदि में भी रुचि थी।

उन्हें हिंदी भाषा के साथ-साथ तो बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत व अन्य बहुत सी भाषाएं आती थी।

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स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस

स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मानते थे। एक बार विवेकानंद जी ने अपने बचपन में देवेंद्र नाथ से पूछा कि _’क्या आपने स्वर को देखा है?’ उनके इस सवाल पर देवेंद्र नाथ चकित हो गए और उन्होंने विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने को कहा। विवेकानंद जी ने रामकृष्ण की शिक्षा और उनके बताए हुए मार्ग पर चलें। रामकृष्ण परमहंस के अंतिम समय में भी स्वामी विवेकानंद जी ने उनकी बहुत सेवा की। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए और उनके इस सेवक ने उनकी अंतिम समय तक उनकी सेवा की।

रामकृष्ण मठ की स्थापना

अपने गुरु की मृत्यु के बाद नरेंद्र ने वराह नगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। जिसका नाम बाद में बदलकर रामकृष्ण मठ हो गया। इसकी स्थापना के बाद नरेंद्र ने दुनिया के सुख को त्याग कर ब्रह्मचर्य का जीवन अपना लिया और नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हो गए।

स्वामी विवेकानंद जी का भारत भ्रमण और अमेरिकी यात्रा

ब्रह्मचर्य जीवन अपनाने के बाद मात्र 25 साल की आयु में विवेकानंद जी भारत दौरे पर पैदल निकल पड़े। उन्होंने पैदल ही अयोध्या, आगरा, वृंदावन, अलवर, वाराणसी और बहुत ही अन्य जगहों का भ्रमण किया।

अपनी इस यात्रा के दौरान वहां राजाओं के महलों में भी रहे और गरीब की झोपड़ी में भी। उन्होंने भारत की गरीबी को बहुत नजदीक से देखा जिससे उनका मन विचलित हो उठा।

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1893 विश्व धर्म सम्मेलन (Swami Vivekananda speech in Chicago)

विवेकानंद 1893 में शिकागो पहुंचे और वहां के विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस धर्म सम्मेलन में हर देश के धर्मगुरु ने अपनी किताब रखी और स्वामी विवेकानंद जी ने Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) रखी। जिस पर उनकी बहुत खिल्ली उड़ाई गई लेकिन जैसे ही विवेकानंद जी ने अपना भाषण शुरू किया और धर्म और अध्यात्म के बारे में बताना शुरू किया तो पूरा सभागृह तालियों की आवाज से गूंज उठा।

अमेरिका में रहते हुए 3 वर्ष तक स्वामी विवेकानंद जी ने वेद की शिक्षा का प्रचार किया अमेरिका की प्रेस उनको cyclonic Monic from India का नाम दिया था। शिकागो, न्यूयॉर्क और बोस्टन में 2 वर्ष तक उन्होंने लेक्चर देने का कार्य किया इसके साथ ही 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की भी स्थापना की।

1895 में स्वास्थ बिगड़ने के कारण उन्होंने लेक्चर देने के स्थान पर योग से जुड़ी शिक्षा देना शुरू कर दिया।

1896 में उनकी मुलाकात ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से हुई जिन्होंने रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखी थी।

15 जनवरी 1897 में विवेकानंद जी श्री लंका गए जहां उनका भव्य स्वागत हुआ इस समय तक वह बहुत ही लोकप्रिय हो चुके थे और उनके द्वारा दी जा रही शिक्षा दुनिया भर में जानी जा रही थी। इसके बाद वह वापस कोलकाता लौट आए और यहां अध्यात्म और धर्म की शिक्षा देने लगे जिसे सुनने के लिए विश्व भर से लोग आया करते थे।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

कोलकाता वापस लौटने के बाद विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसकी स्थापना के पीछे का उद्देश्य ऐसे सन्यासियों और साधुओं का संगठन तैयार करना जो गरीबों की सेवा करें। इसके साथ ही इसका उद्देश्य भारत में अस्पताल, स्कूल और कॉलेज का निर्माण भी था। इसके अलावा विवेकानंद जी ने दो मठ कोलकाता और अल्मोड़ा में स्थापित किए।

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दूसरी विदेश यात्रा

20 जून 1899 को विवेकानंद जी दोबारा अमेरिका गए। यहां उन्होंने कैलिफ़ोर्निया में शांति आश्रम और सन फ्रांसिस्को में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में विवेकानंद जी पेरिस गए। इसी वर्ष के अंत में वह भारत वापस लौट आए और दोबारा भारत भ्रमण शुरू कर दिया।

विवेकानंद जी का अंतिम समय (Swami Vivekananda death)

अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्हें डायबिटीज और अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हो गए। 4 जुलाई 1902 में केवल 39 वर्ष की आयु में विवेकानंद स्वर्गवासी हो गए। उन्होंने स्वयं ही अपनी भविष्यवाणी की थी कि वह 40 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेंगे।

स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा, अध्यात्म और भारत के विकास में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने विचारों से दुनिया भर के लोगों को प्रभावित किया। यदि हम तिनका भर भी स्वामी जी के द्वारा दी गई शिक्षा को अपना ले तो हम निश्चय ही एक बेहतर इंसान बन जाएंगे।

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स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा बोले गए कुछ अनमोल वचन (Swami Vivekananda thought & motivational/educational quotes in Hindi)

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

“खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।”

“किसी दिन जब आप के मार्ग पर समस्या न आए, तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।”

“एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।”

“जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।”

“जैसा तुम सोचते हो वैसा ही बन जाओगे, खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।”

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Author:

आयशा जाफ़री, प्रयागराज